- मंत्र जप का क्या महत्त्व है ?
ध्यान या जप ईश्वर के प्रति एक तरह की वचनबद्धता है. यह एक प्रण है जो हम ईश्वर से करते हैं कि –
१. हम आप के साथ सहयोग करेंगे.
२. ईश्वर द्वारा हम पर संरक्षण और स्नेह की जो वर्षा होती है, हम उसे सार्थक करेंगे.
३. हम उन सभी गुणों को आत्मसात करने का प्रयास करेंगे जो ईश्वर हम से चाहता है.
४. हम ईश्वर के सत्य, न्याय, दया, करुणा, अनुशासन और स्थिरता आदि गुणों का अनुकरण करेंगे.
इस विधि से किया गया जप, मनुष्य मन के अवचेतन स्तर पर ईश्वर से किया गया एक वायदा है. अतः यह काम करता है ! जो लोग इस विधि से जप करते हैं, वे सर्वोत्तम लाभ प्राप्त करते हैं.
- क्या भक्ति योग वेदों के अनुरूप है ?
भक्ति योग का उद्गम है – सामवेद. भक्ति के बिना बाकी सबकुछ अर्थहीन है. लेकिन भक्ति का अर्थ अंध विश्वास नहीं होता है. इसका अर्थ है – सर्वोच्च के प्रति समर्पण और कर्मफल सिद्धांत में अटूट विश्वास.
- वेदों को पढ़ने की कौन–सी आवश्यक शर्तें हैं?
वेद मन्त्रों को समझने के लिए इन ५ महत्त्वपूर्ण बातों का होना आवश्यक है –
- अपने विवेक पर अधिकार और योगसाधना में महारत.
- बुद्धि की प्रखरता और व्यापक तौर पर विषयों का अध्ययन.
- असाधारण भावनात्मक गुणक (EQ, Emotional Quotient).
- शारीरिक शक्ति का सतत संवर्धन और कठोर परिश्रम.
- हिन्दू धर्म का मूलाधार क्या है?
हिन्दू धर्म का मूल इस में है कि परम या पूर्णता या निर्वाण या जो कुछ भी आप उसे कहना चाहें, वह आप के अन्दर ही बस्ता है. आप अपने आतंरिक संकल्प का संवर्धन और पालन करते हुए ही धर्म के पथ पर आगे बढ़ सकते हो न कि बाहरी आशंकाओं और भय को अन्धवत् अपनाते हुए. यही मूलभूत अंतर हिन्दू धर्म को अन्य मतों-सम्प्रदायों से अलग बनाता है.
- हिन्दू धर्म के अनुसार मुझे अपनी बुद्धि या भावनाओं में से किसकी सुननी चाहिए?
हिन्दू धर्म के अनुसार भावनाएं और बुद्धि दोनों की दिशा एक ही होनी चाहिए. यदि बुद्धि द्वारा दिशा का स्पष्ट निर्धारण नहीं होता तो भावनाएं हमें मार्ग से भटका सकती हैं. कोई भी पुस्तक या महानतम् ग्रंथ भी हमारी बुद्धि को सिर्फ एक दिशा दे सकते हैं. भावनाओं की खोज तो केवल आत्म-अभ्यास से ही संभव है.
ओ३म्
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