वेद–वाणी

दिन का शुभारम्भ वेद मन्त्र से करें !

ओं शं नो मित्रः शं वरुणः
शं नो भवत्वय्यर्मा |
शं नो इन्द्रो बृहस्पतिः
शं नो विष्णुरुरुक्रमः ||

हे मंगल प्रदेश्वर! आप सर्वथा सबके निश्चित मित्र हो, हमको सत्यसुखदायक सर्वदा हो,
हे सर्वोत्कृष्ट, स्वीकरणीय, वरेश्वर! आप वरुण अर्थात् सबसे परमोत्तम हो, सो आप हम को परमसुखदायक हो, हे पक्षपातरहित, धर्मन्यायकारिन्! आप अय्यर्मा (यमराज) हो इससे हमारे लिए न्याययुक्त सुख देनेवाले आप ही हो, हे परमैश्वर्यवन्, इन्द्रेश्वर! आप हमको परमैश्वर्ययुक्त शीघ्र स्थिर सुख दीजिए. हे महाविद्यावाचोधिपते, बृहस्पते, परमात्मन्! हम लोगों को (बृहत्) सबसे बड़े सुख देनेवाले आप ही हो, हे सर्वव्यापक, अनंत पराक्रमेश्वर विष्णो! आप हमको अनंत सुख देओ, जो कुछ मांगेंगे सो आपसे ही हम लोग मांगेंगे, सब सुखों का देनेवाला आपके विना कोई नहीं है, सर्वथा हम लोगों को आपका ही आश्रय है. अन्य किसी का नहीं क्योंकि सर्वशक्तिमान् न्यायकारी दयामय सबसे बड़े पिता को छोड़ के नीच का आश्रय हम लोग कभी न करेंगे, आपका तो स्वाभाव ही है कि अङ्गीकृत को कभी नहीं छोड़ते सो आप सदैव हमको सुख देंगे, यह हम लोगों को दृढ़ निश्चय है
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-ऋग्वेद
( भावार्थ – ऋषि दयानन्द सरस्वती )