धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः |
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ||
- धृति – सदा धैर्य रखना, तनिक-तनिक सी बातों में अधीर न होना.
- क्षमा- निंदा-स्तुति, मान-अपमान, हानि-लाभ आदि दु:खों में सहनशील रहना.
- दम: – चंचल मन को वश में करके उसे अधर्म की ओर जाने से रोकना.
- अस्तेयम् – चोरी-त्याग. बिना स्वामी की आज्ञा के किसी पदार्थ को लेने की इच्छा भी न करना.
- शौचम् – बाहर और भीतर की पवित्रता. स्नान, वस्त्र-प्रक्षालन आदि से बाहर की और राग-द्वेष-त्याग से अन्दर की शुद्धता रखना.
- इन्द्रियनिग्रह: – सभी इन्द्रियों को अर्धमाचरण से रोककर धर्म-मार्ग में चलाना.
- धी: – मादक द्रव्यों के त्याग, सत्संग और योगाभ्यास से बुद्धि को बढ़ाना.
- विद्या – पृथ्वी से लेकर परमेश्वर-पर्यंत पदार्थों का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करना और उनसे यथायोग्य उपकार लेना विद्या है.
- सत्यम् – जो पदार्थ जैसा है, उसे वैसा ही जानना, मानना, बोलना और लिखना सत्य कहलाता है.
- अक्रोध: – क्रोध न करना, सदा शांत रहना.
यह धर्म के दस लक्षण हैं.
–मनुस्मृति
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