ब्रह्मचर्य का अर्थ है – ‘ब्रह्म’ – सर्वोच्च स्त्रोत और लक्ष्य की प्राप्ति में तत्पर रहते हुए जीवन यापन करना. ब्रह्मचर्य का अर्थ अविवाहित रहना नहीं है. इसका अर्थ है तन और मन को मात्र उद्देश्यपूर्ण गतिविधियों में लगाए रखना. वह गतिविधियां जिनसे बल और संकल्प की प्राप्ति हो. इसका अर्थ है – शीर्ष पर बने रहना और नीचे न गिरना. एक शिखर से दूसरे शिखर पर चढ़ते हुए सर्वोच्च शिखर को प्राप्त करना.

एक ब्रह्मचारी को वासनाओं और प्रलोभनों को रोकने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती. उसकी तो स्वयं ही किसी भी तरह की बकवास और निरर्थक कार्यों में रुचि समाप्त हो जाती है. आनंद प्राप्त करने के लिए उसके पास अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य और महान लक्ष्य होते हैं.
‘हवस’ के प्रति उदासीनता तो सिर्फ उसका एक स्वाभाविक परिणाम है
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ब्रह्मचर्य का एक ही मार्ग है और वह है ऐसे जीवन उद्देश्य जिनको प्राप्त करने की आप को लगन लग जाए. जितना महान लक्ष्य होगा, उसे प्राप्त करने की धुन भी उतनी ही तीव्र होगी और ब्रह्मचर्य उतना ही बेहतर होगा.

ब्रह्मचर्य का वास्तविक बल तब प्राप्त होता है – जब आप स्वयं योद्धा भी हों, अन्यथा आप को ब्रह्मचर्य अपनी चयापचय क्रिया और इच्छा शक्ति को घटाकर अपनाना होगा, जिस से हानि ही होगी.

आप को ‘ओज’ का रूपांतरण सशक्त एवं सार्थक मेधा बुद्धि और कर्म में करना ही होगा. ब्रह्मचर्य एक आग है. यदि आप उसमें कर्म रूपी ईंधन नहीं ड़ालते हैं तो वह आपको समाप्त कर देगी और आप अगर उस में कर्म का ईंधन ड़ाल देते हैं तो आप टर्बो जेट की तरह उड़ान भरेंगे. जोरदार पुरुषार्थ करके ब्रह्मचर्य के ‘ओज’ का रूपांतरण कर ‘ओजस्वी’ बनें, ब्रह्मचर्य की आग में तप कर कुंदन बनें.

संजीव नेवर